सहारा मौजों का ले ले के बढ़ रहा हूँ मैं सफ़ीना जिस का है तूफ़ाँ वो नाख़ुदा हूँ मैं ख़ुद अपने जल्वा-ए-हस्ती का मुब्तला हूँ मैं न मुद्दई हूँ किसी का न मुद्दआ हूँ मैं कुछ आगे आलम-ए-हस्ती से गूँजता हूँ मैं कि दिल से टूटे हुए साज़ की सदा हूँ मैं पड़ा हुआ हूँ जहाँ जिस तरह पड़ा हूँ मैं जो तेरे दर से न उठ्ठे वो नक़्श-ए-पा हूँ मैं जहान-ए-इश्क़ में गो पैकर-ए-वफ़ा हूँ मैं तिरी निगाह में जब कुछ नहीं तो क्या हूँ मैं तजल्लियात की तस्वीर खींच कर दिल में तसव्वुरात की दुनिया बसा रहा हूँ मैं जुनून-ए-इश्क़ की नैरंगियाँ अरे तौबा कभी ख़ुदा हूँ कभी बंदा-ए-ख़ुदा हूँ मैं बदलती रहती है दुनिया मिरे ख़यालों की कभी मिला हूँ कभी यार से जुदा हूँ मैं हयात ओ मौत के जल्वे हैं मेरी हस्ती में तग़य्युरात-ए-दो-आलम का आइना हूँ मैं तिरी अता के तसद्दुक़ तिरे करम के निसार कि अब तो अपनी नज़र में भी दूसरा हूँ मैं बक़ा की फ़िक्र न अंदेशा-ए-फ़ना मुझ को तअय्युनात की हद से गुज़र गया हूँ मैं मुझी को देख लें अब तेरे देखने वाले तू आइना है मिरा तेरा आईना हूँ मैं मैं मिट गया हूँ तो फिर किस का नाम है 'बेदम' वो मिल गए हैं तो फिर किस को ढूँढता हूँ मैं