जैसे किसी से वस्ल का वा'दा वफ़ा हुआ यूँ सुब्ह-दम चराग़ से शो'ला जुदा हुआ ज़हराब-ए-ग़म का कोई असर हो तो किस तरह सीने में दिल है दिल भी लहू में बुझा हुआ तुझ से सदा-बहार को अँदेशा-ए-ख़िज़ाँ पूरा न हो ख़ुदा करे तेरा कहा हुआ इस चश्म-ए-मय-फ़रोश से पी जिस का एक उम्र इक शाम का भी क़र्ज़ ब-मुश्किल अदा हुआ देता है मुझ को तर्क-ए-मोहब्बत के मशवरे तेरे सिवा भी है कोई दिल में छुपा हुआ जाऊँ कहाँ कि तर्क-ए-तमन्ना के बावजूद है हर तरफ़ हिसार-ए-तमन्ना खिंचा हुआ