सहबा-ए-नज़र के इस छलकाने को क्या कहिए उस शोख़ की आँखों के पैमाने को क्या कहिए यूँ बर्क़ ने फूँका है सब ख़ाक हुए सपने बरबाद नशेमन के अफ़्साने को क्या कहिए दे कर ग़म-ए-दिल अब वो बीमार-ए-मोहब्बत को समझाते हैं उन के इस समझाने को क्या कहिए ये सोज़-ए-मोहब्बत है जब शम्अ' हुई रौशन जल जाता है चुपके से परवाने को क्या कहिए बैठा है अभी आ कर उठ कर अभी चल देगा दीवाना है दीवाना दीवाने को क्या कहिए हाथों में लिए पत्थर फिरते हैं मिरे पीछे अपनों की ये हालत है बेगाने को क्या कहिए रोना मुझे आता है हालत पे तिरी 'आफ़त' घर की जो ये सूरत है वीराने को क्या कहिए