सहमे सहमे चलते फिरते लाशे जैसे लोग वक़्त से पहले मर जाते हैं कितने ऐसे लोग सर पर चढ़ कर बोल रहे हैं पौदे जैसे लोग पेड़ बने ख़ामोश खड़े हैं कैसे कैसे लोग चढ़ता सूरज देख के ख़ुश हैं कौन नहीं समझाए तपती धूप में कुम्हलाएँगे ग़ुंचे जैसे लोग शब के राज-दुलारो सोचो अपना भी अंजाम शब का क्या है काट ही देंगे जैसे-तैसे लोग ग़म का दरमाँ सोचने बैठे थे जो रात गए फ़िक्र-ए-फ़र्दा ले कर उठ्ठे बज़्म-ए-मय से लोग 'मोहसिन' और भी निखरेगा इन शे'रों का मफ़्हूम अपने आप को पहचानेंगे जैसे जैसे लोग