सहमी सहमी धुआँ धुआँ यादें नज़र आती नहीं है राह-ए-विसाल शब की जेबें भरी थीं तारों से दिन भिकारी की तरह है कंगाल शाह बचने लगा पियादे से ये मिरे दाएँ हाथ का है कमाल क़हक़हों की तरह उड़े पंछी ख़ाक पर लोटते पड़े हैं जाल मुँह छुपाए जवाब फिरते हैं सर उठा कर खड़े हुए हैं सवाल