सहरा में दीवार बनाना जाने कैसा हो और फिर इस से सर टकराना जाने कैसा हो ये रस्ते जो हम ने पग पग आप बिखेरे हैं इन रस्तों से लौट के जाना जाने कैसा हो जिस की पोरें दिल की इक इक धड़कन गिनती हैं जिस को हम ने ख़ुद गर्दाना जाने कैसा हो उस के सामने हम क्या जानें दिल पर क्या गुज़रे नाम तक अपना याद न आना जाने कैसा हो उस की निगाह में आना कोई छोटी बात नहीं उस के दिल में राह भी पाना जाने कैसा हो हम क्या जानें पार लगें या आर रहें 'ख़ालिद' रह गुम-कर्दा मर-खप जाना जाने कैसा हो