सहरा में घटा का मुंतज़िर हूँ फिर उस की वफ़ा का मुंतज़िर हूँ इक बार न जिस ने मुड़ के देखा उस जान-ए-सबा का मुंतज़िर हूँ बैठा हूँ दुरून-ए-ख़ाना-ए-ग़म सैलाब-ए-बला का मुंतज़िर हूँ जान-ए-आब-ए-बक़ा खोज में है मैं मौज-ए-फ़ना का मुंतज़िर हूँ खिल जाऊँगा अपने आप से मैं तहसीन-ए-सबा का मुंतज़िर हूँ इस दौर में ख़्वाहिश-ए-तरब है मदफ़न में हवा का मुंतज़िर हूँ माज़ी की सज़ा भुगत रहा हूँ फ़र्दा की सज़ा का मुंतज़िर हूँ शायद कि वहाँ मफ़र हो ग़म से तसख़ीर-ए-ख़ला का मुंतज़िर हूँ हाथों में है मेरे दामन-ए-शब सूरज की सदा का मुंतज़िर हूँ बरसों से खड़ा हूँ हाथ उठाए तासीर-ए-दुआ का मुंतज़िर हूँ मेरा तो ख़ुदा कभी नहीं था मैं किस के ख़ुदा का मुंतज़िर हूँ कहते हैं जिसे 'नज़र' मुसाफ़िर उस आबला-पा का मुंतज़िर हूँ