साज़ आहिस्ता ज़रा गर्दिश-ए-जाम आहिस्ता जाने क्या आए निगाहों का पयाम आहिस्ता चाँद उतरा कि उतर आए सितारे दिल में ख़्वाब में होंटों पे आया तिरा नाम आहिस्ता कू-ए-जानाँ में क़दम पड़ते हैं हल्के हल्के आशियाने की तरफ़ ताइर-ए-बाम आहिस्ता उन के पहलू के महकते हुए शादाँ झोंके यूँ चले जैसे शराबी का ख़िराम आहिस्ता और भी बैठे हैं ऐ दिल ज़रा आहिस्ता धड़क बज़्म है पहलू-ब-पहलू है कलाम आहिस्ता ये तमन्ना है कि उड़ती हुई मंज़िल का ग़ुबार सुब्ह के पर्दे में याद आ गई शाम आहिस्ता