साज़ में सोज़ जब नहीं आता लुत्फ़-ए-बज़्म-ए-तरब नहीं आता हम को अपनी ख़बर नहीं होती वो तो आने को कब नहीं आता अक़्ल में लफ़्ज़-ए-इश्क़ का मफ़्हूम कुछ तो आता है सब नहीं आता होश आने की बात इतनी है जब वो आता है तब नहीं आता उस को उल्फ़त की बात पर ग़ुस्सा पहले आता था अब नहीं आता हो न हो भर रहा है ज़ख़्म-ए-जिगर रंग अश्कों में अब नहीं आता दिल लहू जब तलक न हो 'अख़्गर' रंग-ए-हुस्न-ए-तलब नहीं आता