सजा सजा सा नए मौसमों का चेहरा है ख़िज़ाँ का हुस्न बहारों से बढ़ के निखरा है रफ़ाक़तों के समुंदर में शहर बस्ते हैं हर एक शख़्स मोहब्बत का इक जज़ीरा है सफ़र नसीब हुआ जब से शाह-राहों पर तो फ़ासलों का भी एहसास मिटता जाता है हमारे दौर की तारीकियाँ मिटाने को सहाब-ए-दर्द से ख़ुशियों का चाँद उभरा है