साक़ी-ए-गुलफ़ाम बा-सद एहतिमाम आ ही गया नग़्मा बर लब ख़ुम ब सर बादा ब जाम आ ही गया अपनी नज़रों में नशात-ए-जल्वा-ए-ख़ूबाँ लिए ख़ल्वती-ए-ख़ास सू-ए-बज़्म-ए-आम आ ही गया मेरी दुनिया जगमगा उट्ठी किसी के नूर से मेरे गर्दूं पर मिरा माह-ए-तमाम आ ही गया झूम झूम उट्ठे शजर कलियों ने आँखें खोल दीं जानिब-ए-गुलशन कोई मस्त-ए-ख़िराम आ ही गया फिर किसी के सामने चश्म-ए-तमन्ना झुक गई शौक़ की शोख़ी में रंग-ए-एहतराम आ ही गया मेरी शब अब मेरी शब है मेरा बादा मेरे जाम वो मिरा सर्व-ए-रवाँ माह-ए-तमाम आ ही गया बार-हा ऐसा हुआ है याद तक दिल में न थी बार-हा मस्ती में लब पर उन का नाम आ ही गया ज़िंदगी के ख़ाका-ए-सादा को रंगीं कर दिया हुस्न काम आए न आए इश्क़ काम आ ही गया खुल गई थी साफ़ गर्दूं की हक़ीक़त ऐ 'मजाज़' ख़ैरियत गुज़री कि शाहीं ज़ेर-ए-दाम आ ही गया