तिलिस्म-ए-लफ़्ज़-ओ-मआ'नी को तार तार करें तसव्वुरात की नुदरत को आश्कार करें उतार लाएँ फ़लक से मह-ओ-नुजूम तमाम ज़मीं पे अज़्मत-ए-आदम को उस्तुवार करें हैं सम्त सम्त अयाँ ख़ैर-ओ-शर के हंगामे कि आदमी को ख़ुदाई का राज़-दार करें हैं जम्अ' दहर में फ़ित्ने सभी क़यामत के अब और कौन से महशर का इंतिज़ार करें गुज़र के जाएँगे जिस पुल-सिरात से इक दिन चलो उसी ख़त-ए-क़ातिल को रहगुज़ार करें उठा है जिस की लताफ़त से बंदगी का ख़मीर उसी गुनाह की इस्मत पे जाँ-निसार करें जलाए रखने 'समद' अपनी आरज़ू के चराग़ अजब नहीं कि वो दाग़-ए-जिगर शुमार करें