समद को सरापा सनम देखते हैं मुसम्मा को अस्मा में हम देखते हैं तुझे कैफ़-ए-मस्ती में हम देखते हैं सलासा नज़र का अदम देखते हैं तिरा हुस्न-ए-औसाफ़ हम देखते हैं फ़ना में बक़ा दम-ब-दम देखते हैं जो हैं ख़ाली-ओ-पुर से सर-मस्त-ए-नग़मा हम-आहंगी-ए-कैफ़-ओ-कम देखते हैं नज़र-गाह तेरी है आईना-दिल तुझे हैरती हो के हम देखते हैं फ़ना है फ़ना मुक़तज़ा-ए-मोहब्बत तक़ाज़ा-ए-उल्फ़त को हम देखते हैं गुबार-ए-दिल-ओ-दीदा जो पाक कर दे हम उस अश्क-ए-शबनम को यम देखते हैं उठा जब से पिंदार-ए-हस्ती का पर्दा तुझे नूर-ए-वहदत में हम देखते हैं मकीन-ए-मकाँ ला-मकानी है 'साहिर' हम अंदाज़-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं