समझ के ज़ुल्म करो ऐ बुतो ख़ुदा भी है तुम्हारे जौर-ओ-जफ़ा की कुछ इंतिहा भी है अगर मैं जाऊँगा पूछूँगा ये मसीहा से कि मेरे दर्द-ए-जिगर की कोई दवा भी है कभी रहा मिरे लब तक कभी वहाँ पहुँचा ये नाला मेरा रसा और ना-रसा भी है फ़साना क़ैस का लोगों से सुन लिया होगा ये मेरा क़िस्सा-ए-ग़म आप ने सुना भी है मुसाफ़िरान-ए-अदम आए दो-घड़ी के लिए सरा-ए-दहर में आ कर कोई रहा भी है तमाशा देखिए वो ब'अद-ए-क़त्ल भूल गया कि मेरे दर पे कोई कुश्ता-ए-अदा भी है जफ़ा-ओ-जौर से उन के तो हो गया आजिज़ बुतों के इश्क़ का इस दिल में हौसला भी है समझ के ख़ार-ए-मुग़ीलाँ तो सर उठा अपना कि रहरवों में इक आशिक़ बरहना-पा भी है सफ़ीना बहर-ए-मुसीबत से पार कर देगा ख़ुदा समझते हो जिस को वो नाख़ुदा भी है उठाओ शौक़ से मंज़िल में तुम क़दम अपने कि राहज़न जो है इस में वो रहनुमा भी है नज़र से शैख़ की छुप कर चला हूँ पीने को 'जमीला' अब्र है बारिश है और हवा भी है