समझ रहा था मैं ये दिन गुज़रने वाला नहीं खुला कि कोई भी लम्हा ठहरने वाला नहीं कोई भी रस्ता किसी सम्त को नहीं जाता कोई सफ़र मिरी तकमील करने वाला नहीं हवा की अब्र की कोशिश तो पूरी पूरी है मगर धुवें की तरह मैं बिखरने वाला नहीं मैं अपने-आप को बस एक बार देखूँगा फिर इस के ब'अद किसी से भी डरने वाला नहीं चराग़-ए-जाँ लिए किस दश्त में खड़ा हूँ मैं कोई भी क़ाफ़िला याँ से गुज़रने वाला नहीं मैं क्या करूँ कोई तस्वीर गर अधूरी है मैं अपने रंग तो अब उस में भरने वाला नहीं