समंद-ए-गर्म जो याँ उस सवार का पहुँचा ग़ुबार ता-फ़लक इस ख़ाकसार का पहुँचा तू सच बता कि तुझे इतनी क्यूँ है बेचैनी मगर पयाम किसी बे-क़रार का पहुँचा मले है पाँव से अपने वो लाला-रू हर-दम ये मर्तबा तो दिल-ए-दाग़-दार का पहुँचा है याँ तलक तो नज़ाकत गुलों के गजरे से लचकने लगता है उस गुल-अज़ार का पहुँचा क़फ़स से छुटने की उम्मीद ही नहीं 'अफ़सोस' हुसूल क्या है जो मुज़्दा बहार का पहुँचा