सामान-ए-ज़ौक़-ओ-शौक़ समेटो सफ़र करो रहना ज़रूर है तो किसी दिल में घर करो ख़ुद-आश्ना नहीं तो मुकम्मल नहीं हयात दिल को असीर-ए-हल्क़ा-ए-अहल-ए-नज़र करो आरास्ता लहू से भी होता है क़स्र-ए-दिल कुछ और भी हसीन ये दीवार-ओ-दर करो उभरेगा ज़ुल्मतों से नए दिन का आफ़्ताब तारीकियों के ख़ौफ़ को नज़्र-ए-शरर करो पहले ख़िज़ाँ के चाक-गरेबाँ को देख लो फिर दामन-ए-बहार की जानिब नज़र करो