समर से पूछ लो ज़ौक़-ए-तराश कैसा है वो दिल जो तुम ने किया क़ाश क़ाश कैसा है कोई तो सक़्ल गिरा होगा बहर-ए-साकित में वगर्ना फिर ये दिली इर्तिआ'श कैसा है न ताज़ियत की ज़रूरत न फ़िक्र-ए-ग़मज़दग़ाँ हनूत जिस ने भी की अपनी लाश कैसा है नुक़ूश-ए-मसलक-ओ-मिनहाज ही बताएँगे वो ख़ुश-मिज़ाज है या बद-क़िमाश कैसा है हवास-बाख़्ता जिस से हैं आसमान-ओ-ज़मीं बता वो सानेहा-ए-दिल-ख़राश कैसा है वो जी रहा था दुआओं के सख़्त नर्ग़े में हिसार-ए-ज़ात हुआ पाश पाश कैसा है वजूद उस का था आईना-ए-तिलिस्माती वो अक्स जिस ने किया राज़ फ़ाश कैसा है क़िमार-ख़ाना-ए-दिल में ख़याल-ए-रंगीं से जो शख़्स खेलता रहता था ताश कैसा है कहीं तो वो भी तुम्हारी तरह न हो 'राही' बताओ जिस की है तुम को तलाश कैसा है