समझे हुए लोगों को भी हर बार समझना मुश्किल है बहुत शहर का मेआ'र समझना दम-भर की रिफ़ाक़त भी ग़नीमत है सफ़र में दीवार को भी साया-ए-दीवार समझना वो शख़्स जो देता है गुनाहों की गवाही उस को भी बराबर का गुनाहगार समझना ताक़त नहीं लड़ती है लड़ा करती है हिम्मत टूटे हुए बाज़ू को भी पतवार समझना चलने की तमन्ना थी पहुँचने की नहीं थी अब डूब भी जाऊँ तो मुझे पार समझना ये शहर ही जब आप को प्यारा है तो 'शाहिद' नफ़रत भी अगर दे तो उसे प्यार समझना