सामने जब कोई भरपूर जवानी आए फिर तबीअत में मिरी क्यूँ न रवानी आए कोई प्यासा भी कभी उस की तरफ़ रुख़ न करे किसी दरिया को अगर प्यास बुझानी आए मैं ने हसरत से नज़र भर के उसे देख लिया जब समझ में न मोहब्बत के मआनी आए उस की ख़ुशबू से कभी मेरा भी आँगन महके मेरे घर में भी कभी रात की रानी आए ज़िंदगी भर मुझे इस बात की हसरत ही रही दिन गुज़ारूँ तो कोई रात सुहानी आए ज़हर भी हो तो वो तिरयाक़ समझ कर पी ले किसी प्यासे के अगर सामने पानी आए ऐन मुमकिन है कोई टूट के चाहे 'साक़ी' कभी एक बार पलट कर तो जवानी आए