समुंदर से किसी लम्हे भी तुग़्यानी नहीं जाती मगर साहिल को ग़म है ख़ुश्क-दामानी नहीं जाती ग़नीमत है मिरी आँखों की ये सय्याल आतिश भी इसी से मेरे ज़ेहन-ओ-दिल की ताबानी नहीं जाती सवा-नेज़े पे सूरज देर तक रुकने नहीं पाता मगर क्या है कि तेरी शो'ला-अफ़्शानी नहीं जाती सदा-ए-ख़ामुशी देती है अब दस्तक दर-ए-दिल पर न जाने क्यूँ हमारे घर से वीरानी नहीं जाती रिहा हो कर भी कुछ ताइर क़फ़स में लौट आते हैं फ़ज़ा-ए-क़ैद की आदत ब-आसानी नहीं जाती तमद्दुन का नया जामा बहुत शफ़्फ़ाफ़ है यारो कि तन-पोशी करो कितनी ही उर्यानी नहीं जाती जतन सारे ही करता हूँ मगर क्या कीजिए 'अरशद' मिरी ख़ुद्दारी-ए-फ़ितरत है दीवानी नहीं जाती