सुन लेवे अगर तू मिरी दिलदार की आवाज़ हरगिज़ न सुने फिर कभूँ मिज़मार की आवाज़ खुल जावें अगर कान तिरे दिल के तो बे-शक हर सम्त से फिर आए तुझे यार की आवाज़ सुन कर वो सदा ताइर-ए-दिल की मिरे बोले शायद कि ये है बुलबुल-ए-गुलज़ार की आवाज़ हो जावे कमाँ तीर-ए-फ़लक बार-ए-अलम से सुन लेवे जो तेरे लब-ए-सोफ़ार की आवाज़ मुर्दे को जिला कर के बनावे है मसीहा ऐ ईसा-ए-दौराँ तिरी रफ़्तार की आवाज़ सुनता हूँ मैं 'आसिम' शह-ए-ख़ादिम के लबों से हर लहज़ा बदल शिबली और अत्तार की आवाज़