वहशत को 'सना' छुपाए रखना दस्तार-ओ-क़बा सजाए रखना दीवाने ही तेरे जानते हैं सहराओं को भी बसाए रखना आँखों के सितारे रूप का चाँद ये सारे दिए जलाए रखना साँसों की महक बदन की ख़ुशबू होंटों के कँवल खिलाए रखना पलकों की ये छाँव रूप की धूप माथे की सहर जगाए रखना कुछ गर्म हवाएँ चल रही हैं ज़ुल्फ़ों की घटा छुपाए रखना उलझा हूँ अभी ग़म-ए-जहाँ में बातों में उसे लगाए रखना