साँसों के तआक़ुब में हैरान मिली दुनिया तस्वीर बने जब हम आईना हुई दुनिया हम ख़ून पसीना जब इक कर के हुए रौशन क्यूँ आग बनी दुनिया और ख़ूब जली दुनिया अपना नज़रिय्या क्या महरूम-ए-नज़र हैं जब उस सम्त चले हम भी जिस सम्त चली दुनिया सैलाब-ए-बला से ये क्यूँ ख़ौफ़ दिलाती है क्या हम को बचाएगी शोलों में घिरी दुनिया मामूल जुदाई है गो फूल की गुलशन से लेकिन जो हुई अन्क़ा ख़्वाबों में बसी दुनिया सब ख़्वाब पुराने हैं हर चंद फ़साने हैं हम रोज़ बसाते हैं आँखों में नई दुनिया हम दोनों सफ़र में थे मालूम नहीं अब कुछ क्या तू ने कही दुनिया क्या हम ने सुनी दुनिया फ़र्दा-ए-क़यामत का व'अदा तिरा पुरसाँ है अब कितनी बचीं साँसें अब कितनी बची दुनिया हर बात पे हैरानी हर लम्हे की निगरानी दुनिया से 'अता' यानी कब समझी गई दुनिया