सँवार नोक-पलक अबरुओं में ख़म कर दे गिरे पड़े हुए लफ़्ज़ों को मोहतरम कर दे ग़ुरूर उस पे बहुत सजता है मगर कह दो इसी में उस का भला है ग़ुरूर कम कर दे यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे चमकने वाली है तहरीर मेरी क़िस्मत की कोई चराग़ की लौ को ज़रा सा कम कर दे किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी ज़मीन तेरी ख़ुदा मोतियों से नम कर दे