सपनों में रात आई नाज़ुक जो फूल वाली क़दमों में तारे बिखरे लहराई दिल की डाली उस के सिवा नहीं है इस्मत का कुछ तसव्वुर ख़ुद हुस्न गोया अपने रंग-रूप की है जाली जिस के सलोने मुख पर तन वारे भोर अपना उस से मिलन की आई शुभ रात काली काली धरती पे सुर्ख़ हो कर उतरे नए सवेरे ज़ीनत बनी फ़लक की मेरे लहू की लाली नाज़ुक हैं ग़ुंचा-ओ-गुल इन का ख़याल रखना कहता यही है सब से बाग़-ए-जहाँ का माली