सर में सौदा-ए-वफ़ा रखते हैं हम भी इस अहद में क्या रखते हैं वास्ता जिस का तिरे ग़म से न हो हम वो हर काम उठा रखते हैं बिन खिली एक कली पहलू में हम भी ऐ बाद-ए-सबा रखते हैं बुत-कदे वालो तुम्हें कुछ बोलो वो तो चुप हैं जो ख़ुदा रखते हैं ग़ैरत-ए-इश्क़ कोई राह निकाल ज़ुल्म वो सब पे रवा रखते हैं क्या सलीक़ा है सितमगारी का रुख़ पे दामान-ए-हया रखते हैं चारा-साज़ान-ए-ज़माना ऐ दिल ज़हर देते हैं दवा रखते हैं नग़्मा-ए-शौक़ हो या नाला-ए-दिल दर्द-मंदाना सदा रखते हैं दिल की ता'मीर को ढा कर 'अख़्तर' वो मोहब्बत की बिना रखते हैं