सारा शहर बिलकता है By Ghazal << जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैद... ग़म रहा जब तक कि दम में द... >> सारा शहर बिलकता है फिर भी कैसा सकता है गलियों में बारूद की बू या फिर ख़ून महकता है सब के बाज़ू यख़-बस्ता सब का जिस्म दहकता है एक सफ़र वो है जिस में पाँव नहीं दिल थकता है Share on: