सराब-ए-सहरा में पानी तलाश करता है वो दलदलों में रवानी तलाश करता है हर एक ज़र्रे से पहचान रब की होती है वो फिर भी उस की निशानी तलाश करता है उसे यक़ीन है अपने ख़ुदा की रहमत पर जो तपते सहरा में पानी तलाश करता है किताब-ए-दिल को समझना मुहाल है उस का वो चेहरा चेहरा मआ'नी तलाश करता है नए ग़मों के अँधेरों से जंग है उस की बुझे दियों की जवानी तलाश करता है हों राजा रानी, हों लश्कर, हों हाथी घोड़े सब वो हर कहानी में नानी तलाश करता है बहुत शरीफ़ है तो 'चाँद' जा के संसद में 'कबीर-दास' की वाणी तलाश करता है