सर-बरहना भरी बरसात में घर से निकले हम भी किस गर्दिश-ए-हालात में घर से निकले दिन में किस किस को बताएँगे मसाफ़त का सबब बस यही सोच के हम रात में घर से निकले सर पे ख़ुद अपनी सलीबों को उठाए हम लोग रूह का बोझ लिए ज़ात में घर से निकले कब बरस जाएँ इन आँखों का भरोसा ही नहीं कौन बे-वक़्त की बरसात में घर से निकले डर गया देख के मैं शहर-ए-मुहज़्ज़ब का चलन कितने आसेब फ़सादात में घर से निकले ऐन मुमकिन है की वो दिन में नुमायाँ ही न हो उस सितारे से कहो रात में घर से निकले उन की फ़ितरत में तग़ाफ़ुल भी मुरक्कब था 'नफ़स' हम ही नादाँ थे जो जज़्बात में घर से निकले