सर्द आहों ने मिरे ज़ख़्मों को आबाद किया दिल की चोटों ने जो रह रह के तुझे याद किया मेहरबानी मिरे सय्याद की देखे कोई जब ख़िज़ाँ आई मुझे क़ैद से आज़ाद किया महफ़िल-ए-नाज़ से लाया जो यहाँ तक उन को तू ने ये काम अजब ऐ दिल-ए-नाशाद किया मय-कशों ने उसे साक़ी का इशारा समझा झुक के शीशे ने जो साग़र से कुछ इरशाद किया दिल-ए-बेताब को मुश्किल से सँभाला था मगर ज़ब्त-ए-ग़म ने मुझे आमादा-ए-फ़रियाद किया काम जब कुछ न बना इश्क़ की नाकामी से दर्द ने आप को शर्मिंदा-ए-बेदाद किया ख़ुद मुझे भी नहीं बर्बादी का एहसास 'शजीअ' इस सलीक़े से किसी ने मुझे बरबाद किया