सारे आलम में नूर है तेरा हर जगह पर ज़ुहूर है तेरा शर्क़ से ग़र्ब क़ाफ़ से ता-क़ाफ़ तज़्किरा दूर दूर है तेरा दिल-ए-आशिक़ को क्यूँ जलाता है ये भी क्या कोह-ए-तूर है तेरा मैं कहाँ और तेरा नाम कहाँ सब करम का वफ़ूर है तेरा शब-ए-फ़ुर्क़त को क्यूँ दराज़ किया क्या ये रोज़-ए-नुशूर है तेरा उस सितमगर का क्या करें शिकवा ओ रे दिल सब क़ुसूर है तेरा रहम कर आसमाँ पे ऐ बारी बंदा-ए-पुर-क़सूर है तेरा इस को कहते हैं 'अंजुम'-ए-आसी नाम रब्ब-ए-ग़फ़ूर है तेरा