सारे आलम से मिरे ग़म का है अफ़्साना जुदा दिल के मातम के लिए चाहिए ग़म-ख़ाना जुदा गरचे वहशत का नहीं है कोई अफ़्साना जुदा पर नज़र आता है सब से तिरा दीवाना जुदा क़ुर्बत-ए-हुस्न ग़ज़ब है कि सर-ए-महफ़िल-ए-नाज़ उस के लब से नहीं होता लब-ए-पैमाना जुदा ऐ ख़ुदा कश्मकश-ए-यास-ओ-तमन्ना कब तलक उन के रहने के लिए दिल में हो हर ख़ाना जुदा आज तंग आ के ये नासेह को दिया मैं ने जवाब मज़हब-ए-शैख़ जुदा मशरब-ए-रिंदाना जुदा ख़ुश्क हो जाए जो बाक़ी है रग-ए-जाँ में लहू दिल से होना न अभी ऐ ग़म-ए-जानाना न जुदा बे-ख़ुदी में भी रक़ाबत का मगर है एहसास एक सहरा में है दीवाने से दीवाना जुदा सब्र की मुझ को जुदाई में है तल्क़ीन फ़ुज़ूल ये तो जब हो कि रहे शम्अ' से परवाना जुदा दश्त जागीर है मजनूँ की तो क्या फ़िक्र 'नज़र' खोद कर घर को बना लीजिए वीराना जुदा