सारे मंज़र ख़ाक होते जा रहे हैं दोस्तो हम ने जो पाया है खोते जा रहे हैं दोस्तो आओ पैदल ही सफ़र के सिलसिलों को रौंद दें बैठे बैठे बाँझ होते जा रहे हैं दोस्तो साँस की डोरी में उजड़े मौसमों की सीपियाँ इक तसलसुल से पिरोते जा रहे हैं दोस्तो तैरती मुड़ मुड़ के तकती कश्तियों के बादबाँ रफ़्ता रफ़्ता दूर होते जा रहे हैं दोस्तो ना-समझ इस सर-ज़मीन पर आने वालों के लिए नित नए बोहरान बोते जा रहे हैं दोस्तो ये घनी छाँव पड़ाव थी नए आग़ाज़ का इस घनी छाँव में सोते जा रहे हैं दोस्तो