सारे मौसम हैं मेहरबान से कुछ रोज़ उतरता है आसमान से कुछ हर इबारत सवाल जैसी है लफ़्ज़ ग़ाएब हैं दरमियान से कुछ किस की लौ ने जला दिया किस को राख में हैं अभी निशान से कुछ किस से तफ़्सीर-ए-माह-ओ-साल करें दिन गुज़रते हैं बे-अमान से कुछ क्या ख़बर ये कहाँ तलक फैले उठ रहा है धुआँ गुमान से कुछ कारवाँ किस का मंज़िलें किस की क्या झलकता है दास्तान से कुछ एक तस्वीर रौशनी ले कर साए निकले तो हैं मकान से कुछ इस क़दर ए'तिबार कर लीजे रब्त रखता हूँ ख़ानदान से कुछ तुम भी उस वक़्त से डरो लोगो जब निकल जाए इस ज़बान से कुछ