सरों की फ़स्ल काटी जा रही है वो देखो सुर्ख़ आँधी आ रही है हटा लो सहन से कच्चे घड़ों को कहीं मल्हार सोहनी गा रही है मिरी दस्तार कैसे बच सकेगी क़सम वो मेरे सर की खा रही है ये बरसेगी कहीं पर और जा कर घटा जो मेरे सर पर छा रही है समझ रक्खा है क्या दीवानगी को ये दुनिया क्या हमें समझा रही है तमन्ना जल्द मरने की है हम को हयात अब तक यूँही बहला रही है