सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम मस्त-ए-शराब-ए-शौक़ हूँ ख़य्याम की क़सम इशरत-फ़रोश था मिरा गुज़रा हुआ शबाब कहता हूँ खा के इशरत-ए-अय्याम की क़सम होती थी सुबह-ए-ईद मिरी सुब्ह पर निसार खाती थी शाम-ए-ऐश मिरी शाम की क़सम 'अख़्तर' मज़ाक़-ए-दर्द का मारा हुआ हूँ मैं खाते हैं अहल-ए-दर्द मिरे नाम की क़सम