सता कर सितम-कश को क्या पाइएगा जो की कुछ शिकायत तो झुँझलाइएगा वो बर्क़-ए-तजल्ली की जो जल्वा-गाह वहीं हज़रत-ए-दिल न रह जाइएगा अदब की जगह मरने वालो है क़ब्र समझ कर यहाँ पाँव फैलाईएगा ग़रीब अब तो क़दमों में ही आ पड़ा दिल-ए-ना-तवाँ को न ठुकराइएगा ख़बर भी है कुछ बार-ए-इस्याँ की 'शौक़' हुई वाँ जो पुर्सिश तो शरमाइएगा