साथ साए की तरह वहशत में उर्यानी हुई मुझ से दीवाने के पीछे ये भी दीवानी हुई सदक़े उन की ज़ुल्फ़ के मेरी परेशानी हुई मैं तो दीवाना था ये भी आज दीवानी हुई उन के आँचल में अदा बन कर क़यामत छुप चुकी वो मिरी जानी हुई वो मेरी पहचानी हुई किस के जल्वे ने निगाह-ए-शौक़ पर डाला असर तूर के दामन में अच्छी बर्क़ जौलानी हुई अब जो खुल-खेलें ये जोबन कोई इस को क्या करे पर्दे पर्दे में बहुत उन की निगहबानी हुई मानते हैं वो मुझे ये ग़ैर को तस्लीम है मान लेते हैं मिरी ये बात है मानी हुई ग़ैर ही के हो रहें अब क्या रफ़ू करते हैं वो चाक-दामानी से उन की चाक-दामानी हुई क़हत था कितने मज़े का हुस्न-ए-अर्ज़ां बिक गया इस गिरानी में मज़े आए वो अर्ज़ानी हुई ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ ने मारा तारा दीदा-ओ-दिल क्या कहें किस को हैरानी हुई किस को परेशानी हुई ज़मज़मी में जाम-ए-मय में गिर गया पानी सिवा थी मिरी क़िस्मत में जैसी आज सब पानी हुई वा'दा दुश्मन से न था तो हश्र में शरमाए क्यूँ इस तरह वो चुप हैं गोया बात है मानी हुई देख कर सब्ज़ा मिरी तुर्बत का बदली वज़-ए-जौर आसमानी आप की पोशाक क्यूँ धानी हुई ढेर हैं कितने यहाँ बाम-ए-हसीनाँ से बुलंद जिंस-ए-दिल उठती नहीं इतनी फ़रावानी हुई पाक-साफ़ ऐसी है जिस ने पी फ़रिश्ता बन गया ज़ाहिदो ये हूर के दामन में है छानी हुई बंद टूटे मस्की महरम रंग उड़ा जोबन लुटा ग़ैर के घर जा के उन की ख़ूब मेहमानी हुई आएँ जाएँगे अदू हम तोड़ कर बैठेंगे पाँव आप ने दरबाँ बनाया हम से दरबानी हुई शक्ल क्या खिंचती मिरी मैं गर्द-बाद-ए-दश्त था गर्द तस्वीर-जुनूँ से सनअ'त-ए-मानी हुई पीते ही दुनिया के झगड़ों से हुए बे-फ़िक्र हम किस क़दर दुश्वारियाँ थीं कितनी आसानी हुई दामन-ए-गुलचीं में भी कुछ फूल बरसाए 'रियाज़' कहिए कुछ उस की ज़मीं में भी गुल-अफ़्शानी हुई