सौत-ए-बुलबुल दिल-ए-नालाँ ने सुनाई मुज को सैर-ए-गुल दीदा-ए-गिर्यां ने दिखाई मुज को लाऊँ ख़ातिर में न मैं सल्तनत-ए-हफ़्त-इक़लीम उस गली की जो मयस्सर हो गदाई मुज को वस्ल में जिस की नहीं चैन ये अंदेशा है आह दिखलाएगी क्या उस की लड़ाई मुज को वस्ल में जिस के न था चैन सो 'जुरअत' अफ़्सोस वो गया पास से और मौत न आई मुज को