सवाल तुझ से शब-ओ-रोज़ मेरा चलता रहा जवाब तेरा हवाओं में मुझ को मिलता रहा फ़लक पे चाँद सितारों का कारवाँ भी बुझा तुम्हारी याद का लेकिन चराग़ जलता रहा क़रीब-ए-मर्ग जो देखा तो पास कोई न था तमाम उम्र ये फिर कौन साथ चलता रहा बला के हब्स में सारी ज़मीन सूख गई मगर ये प्यार का पौदा था फिर भी फलता रहा मैं बेवफ़ा भी कहूँ किस तरह तुझे जानाँ तू बन के बाद-ए-सबा रोज़ मुझ से मिलता रहा मैं ए'तिबार मोहब्बत का तेरी क्या करता बयान तेरा तो हर रोज़ ही बदलता रहा रफ़ू मैं करता भी 'एजाज़' कैसे ज़ख़्मों को ज़बाँ का ज़ख़्म था ये गुफ़्तुगू से सिलता रहा