चंद तिनके थे जो 'अंजुम' आशियाने के लिए बर्क़ उन को भी चली आई जलाने के लिए आरज़ूएँ हसरतें वा'दा ओ पैमान-ए-वफ़ा सुर्ख़ियाँ कितनी मिली हैं इक फ़साने के लिए उम्र-भर रोते रहे अश्कों से दामन तर रहा उम्र-भर तरसा किए हम मुस्कुराने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा ऐ हयात-ए-मुस्तआ'र कारोबार-ए-ज़िंदगी 'अंजुम' चलाने के लिए शेर-गोई की मयस्सर है फ़राग़त अब किसे दाम-ए-दुनिया में फँसे हम आब-ओ-दाने के लिए