सीपी हैं सब के पास गुहर किस के पास है जो मेरे पास है वो हुनर किस के पास है चेहरे पे ख़ाक आँख में मोती लबों पे आह इस क़ाएदे का रख़्त-ए-सफ़र किस के पास है सहरा-नवर्द पूछता फिरता है शहर शहर जो दे सके पनाह वो घर किस के पास है लब पर तो हैं दुआएँ मगर ऐ दिल-ए-हज़ीं तू ख़ूब जानता है असर किस के पास है अल्फ़ाज़ पर न रूह-ए-मआ'नी पे हर्फ़ आए ये ए'तिबार-ए-हर्फ़-ए-दिगर किस के पास है ख़ामोश है जो शम्अ' ज़बाँ मिल सके उसे ये शो'लगी-ए-हर्फ़-ए-हुनर किस के पास है मौसम का ये अज़ाब रविश-दर-रविश है 'शान' अब इम्तियाज़-ए-नख़्ल-ओ-समर किस के पास है