सीपी सादा मुँह जब खोले किरनों की तब बारिश हो मोती की दो मालाएँ और उन पर चमके गंगा जल काली लट है नागिन जैसी कान की लोहे उस का फन उस की नज़रों में धोका है उस की बातों में है छल उस का चलना जैसे हिलना फूलों की इक डाली का शाख़ कमर है नाज़ुक ऐसे लहराती या खाती बल आज मधुर है लहजा तेरा बोल सुहाने तेरे 'अयाज़' आज ग़ज़ल में बात नई है बात नई तू कहता चल