शाख़ पर ख़ून-ए-गुल रवाँ है वही शोख़ी-ए-रंग-ए-गुल्सिताँ है वही सर वही है तो आस्ताँ है वही जाँ वही है तो जान-ए-जाँ है वही अब जहाँ मेहरबाँ नहीं कोई कूचा-ए-यार मेहरबाँ है वही बर्क़ सौ बार गिर के ख़ाक हुई रौनक़-ए-ख़ाक-ए-आशियाँ है वही आज की शब विसाल की शब है दिल से हर रोज़ दास्ताँ है वही चाँद तारे इधर नहीं आते वर्ना ज़िंदाँ में आसमाँ है वही