शाम छत पर उतर गई होगी दर्द सीने में भर गई होगी ख़्वाब आँखों में अब नए होंगे ज़िंदगी भी सँवर गई होगी मैं तो कब से उदास बैठा हूँ ज़िंदगी किस के घर गई होगी एक ख़ुश्बू थी साथ में अपने कौन ढूँडे किधर गई होगी उस का चेहरा उदास है 'माजिद' आईने पर नज़र गई होगी