शबाब आया तड़पने और तड़पाने का वक़्त आया अगर सच पूछिए बे-मौत मर जाने का वक़्त आया अभी जी भर के पी लो फिर न जाने किस पे क्या गुज़रे क़रीब अब शैख़-जी के वा'ज़ फ़रमाने का वक़्त आया उन्हें पास-ए-हया ठहरा तो अपने पाँव लर्ज़ां हैं हमारी जुरअतों का उन के शरमाने का वक़्त आया घटा छाई बरसने को हैं बूँदें अब्र-ए-नीसाँ से नहीं पीते जो नादाँ उन को समझाने का वक़्त आया न हो जाए कहीं फिर आप से तुम तुम से तू 'आज़म' हुदूद-ए-अक़्ल से बाहर निकल जाने का वक़्त आया