शब-चराग़ कर मुझ को ऐ ख़ुदा अँधेरे में साँप बन के डसता है रास्ता अँधेरे में आईना उजाला है ज़ात का हवाला है फिर भी किस ने देखा है आईना अँधेरे में लेकिन अब भी रौशन हैं ख़्वाब मेरी आँखों के चाँद तो कहीं जा कर सो गया अँधेरे में जब भी बंद कीं आँखें खुल गईं मिरी आँखें रौशनी से गुज़रा हूँ बारहा अँधेरे में आदमी की क़िस्मत भी आगही की क़िस्मत भी इब्तिदा अँधेरे से इंतिहा अँधेरे में अपने इल्म पर 'शबनम' नाज़ क्या करे कोई इक क़दम उजाले में दूसरा अँधेरे में