शब-ए-फ़िराक़ में ये दिल से गुफ़्तुगू क्या है मरी उमीद हैं वो उन की आरज़ू क्या है रगें तमाम बदन की इधर को खींचती हैं किसी का हाथ क़रीब-ए-रग-ए-गुलो क्या है शिकस्त-ए-आबला-ए-पा ने आबरू रख ली खुला न हाल कि पानी है क्या लहू क्या है मैं अपनी मौत पे राज़ी वो लाश उठाने पर अब आगे देखना है मर्ज़ी-ए-अदू क्या है ये किस को आइने में आप देखे जाते हैं जहाँ में आप से भी कोई ख़ूब-रू क्या है सबब भी पूछ लो उन की ज़िदों से ऐ 'जावेद' रुला रुला के हँसाएँ ये उन की ख़ू क्या है