शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन मिसाल-ए-शम्अ जले अहल-ए-अंजुमन तुझ बिन हुई है जान मुझे ज़िंदगी मरन तुझ बिन कफ़न हुई हैं बदन के ऊपर बसन तुझ बिन न शहर बीच मिरा दिल लगे न सहरा में कुछ आवती नहीं ऐ माह मुझ सीं बन तुझ बिन हुआ है आग का शोला शराब प्याले में लगा है जान लबाँ कूँ मिरे दहन तुझ बिन उदास दिल पे हमारा कहीं न जा पर्चा कठिन हुआ है मुझे शहर में बसन तुझ बिन कभी तो याद कर इख़्लास फ़ातिहा कहना कि 'आबरू' का हुआ हिज्र सीं मरन तुझ बिन